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Sunday, 10 March 2013

मैं यादों के बियाबां में जब नजरे घुमाता हूँ

लम्बे टाइम के बाद एक गीत लिखा है ..............

मैं यादों के बियाबां में जब नजरे घुमाता हूँ
जी घबराता है सांसे तक ले नही पाता हूँ

न जाने दिन वो कैसे थे नही था दर्द सीने में
बहुत मस्त रहता था मजा आता था जीने में
मगर अब हाल उल्टा है न ढंग से मुस्कुराता हूँ
यादों के बियाबां में......................

नजर से गिरा हूँ तो वो क्यूं दिल में जगह देगा
परेशाँ हूँ एक दिन मुझे सचमुच भूला देगा
यही सब सोच अश्को की बारिश में नहाता हूँ
यादों के बियाबां में......................

वो मेरे पूण्य का फल था समझ आ रहा है अब
नही तो उसके जाते ही गडबड हो गया क्यूं सब
बहुत बेचैन हूँ दिन रात अब मैं चिल्लाता हूँ
यादों के बियाबां में......................

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