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Sunday 4 October 2015

खुद को हमने हाय अभिमन्यु बना लिया है

इच्छाओ के भंवर में पूरी तरह धंसा लिया है
खुद को हमने हाय अभिमन्यु बना लिया है

चाहते तो सभी है जुड़े रहे अपनों से मगर
खुदगर्ज़ भागदौड़ में खुदी की नही है खबर
रूह कसमसाती है सुबह शाम रात-ओ-दिन
ना फैंसला हुआ जी सकते नही किसके बिन
परेशानियों का कैसा ये बाज़ार सज़ा लिया है
खुद को हमने हाय..............

कल तक की बात थी मुस्कुराते बचपन की
अब पी गए उमर हम एक तिहाई जीवन की
आते ही हाय जाने की तैयारियों में जुट गए
अ जिंदगी तुझे तो समझते ही हम लुट गए
ताश के पत्तों का कैसा महल जंचा लिया है
खुद को हमने हाय ..............

अहसास सिसकता है तन्हाइयों में बैठकर
क्या पाया प्यार में आपस में हमने ऐंठकर
हम वक्त और जन्म दोनों ही हार चले है
क्या तुझे खबर है हम किसके हाथों छले है
अफ़सोस के दलदल में जन्म फंसा लिया है
खुद को हमने हाय............. 

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