Followers

Friday, 2 December 2011

व्यवस्था बदल रही है

बसंती का है गब्बर यार
पप्पू पास होवे हर बार
व्यवस्था बदल रही है
आदमी को छल रही है ............

नीतिया है जितनी सरकारी
सब आम आदमी पर भारी
हक के लिए हर कोई रोता है
चुप रहना सबकी लाचारी
कण-कण में है भ्रष्टाचार
जिंदगी हो गई है दुश्वार
व्यवस्था बदल रही है
आदमी को छल रही है ............

यह  तेरा है यह मेरा है
खुदगर्जी ने सबको घेरा है
है रात अँधेरी दूर तलक
ना सोच में अब सवेरा है
हर सांस हुई है बेज़ार
बेबसी में सारा संसार
व्यवस्था बदल रही है
आदमी को छल रही है ............

आँखों में शर्म और लाज नही
कही सुंदर स्वस्थ समाज नही
इक शख्स का नाम बता दो तुम
लालच की जिसके खाज नही
लूटकर सब खाने को तैयार
रक्षक जिसमे हिस्सेदार
व्यवस्था बदल रही है
आदमी को छल रही है ............

बेचैन है हर रिश्ते नाते
रहते है सारे पछताते
क्या हुआ आदमी को दाता
इंसा को इंसा नही भाते
जानवर सा बदत्तर व्यवहार
चील,गिद्ध कौवे रिश्तेदार
व्यवस्था बदल रही है
आदमी को छल रही है ............



No comments:

Post a Comment